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Showing posts from September, 2020

प्राचीन तीर्थंकर परंपरा आणि महावीर

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प्राचीन तीर्थंकर परंपरा आणि महावीर -  September 06, 2020 मध्यमपावाची धर्मपरिषदेत कैवल्याज्ञानी भगवान महावीरांनी पारंपरिक वैदिक धर्माला आव्हान दिले. अकारा वैदिक पंडित आणि त्यांच्या ४४०० शिष्यांनी त्यांच्याकडून प्रव्रज्या स्वीकारली. ही घटना जैन परंपरेचा एक संस्थात्मक धर्म म्हणून उद्घोषच होता. मात्र जैन साहित्य व इतिहास यांचे अवलोकन केले असता,महावीरांच्या फार पूर्वीपासून जैन परंपरा अस्तित्वात होती. अशी मांडणी सातत्याने जैन अभ्यासकांनी आणि तशीच काही विदेशी अभ्यासकांनी केली आहे. जैन परंपरा आपल्या अतिप्राचीनत्वाचा जो दावा करते. त्याच्यासाठी या परंपरेने दिलेल्या प्रमाणांचा आढावा घेणे आवश्यक ठरते. महावीरांना जैन धर्माचे २४ वे आणि अखेरचे तीर्थंकर मानले जाते. तीर्थंकर ही संकल्पना यासाठी पाहावी लागते. जैन धर्माच्या ऐतिहासिक धारणेप्रमाणे कालचकाचे दोन भाग करण्यात आले आहे. पहिला म्हणजे क्रमशः विकसित होत जाणारा म्हणजेच उत्सर्पिणी काल आणि दुसरा म्हणजे क्रमशः -हास होत जाणारा म्हणजेच अवसर्पिणी काल. कालचक रथाच्या चाकाप्रमाणे खालून वर आणि वरून खाली म्हणजेच अवनतीकडून उन्नतीकडे आणि उन्नतीकडून अवनतीकडे फिरत

आणि बुद्ध हसत आहे.

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आणि बुद्ध हसत आहे. -  May 18, 2019    इ.स.पूर्व सहाव्या शतकात भारतात असलेली गणराज्यात्मक लोकशाही व्यवस्था ध्वस्त करु    पाहणा-या साम्राज्यवादी शक्तींना बळकटी प्राप्त होऊ लागली. भौतिक , सामाजिक , राजकीय व वैचारिकदृष्टया संपन्न अशी ही गणराज्यं  ' विनाशकाले विपरित बुद्धी '   या उक्तीनुसार आपापसात संघर्ष करत , साम्राज्यवादी एकाधिकारशाही प्रवृत्तीला बळी पडत होती. दुस-या बाजूला तत्कालीन वैदिक धर्म स्वतःच्या निर्माण केलेल्या अभेद्य तटबंदयांमध्ये अडकून पडला होता. धर्म म्हणजे कर्मकांड आणि समाज म्हणजे न बदलता येणारी जातीय उतरंड असा समज वैदिक धर्ममार्तडांनी दृढमुल केला होता. अशा परिस्थितीत सर्वसामान्य माणूस भरडला जात होता. एकूणच राजकीय असो वा धार्मिक अशा दोन्ही स्तरांवर क्रौर्य , व्यभिचार आणि अविवेक यांनी समाजाला ग्रासले असतांना ,' करु णा-शील-प्रज्ञा '  हा महामंत्र देणा-या भगवान गौतम बुद्धांचा जन्म झाला. कपिलवस्तूच्या या शाक्यवंशीय राजपुत्राने जगातील पहिल्या विश्वव्यापक अशा बौद्ध धर्माची स्थापना केली. अलौकिक , काल्पनिक ,  अगोचर ,  कुट व गुढ संकल्पनांची मांडणी म्हणजे धर्मसिद्धांत आ

.कोतवाल (पक्षी)

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कोतवाल (पक्षी) कोतवली  याच्याशी गल्लत करू नका. कोतवाल (पक्षी) शास्त्रीय नाव डायक्रुरस माक्रोसर्कस (Vieillot) कुळ कोष्ठपालाद्य (डायक्रुरिडी) अन्य भाषांतील नावे इंग्लिश Black Drongo संस्कृत कोष्ठप हिंदी कोतवाल वर्णन  कोतवाल पक्षी हा साधारण ३१ सें. मी. आकाराचा संपूर्ण काळ्या रंगाचा, सडपातळ, चपळ पक्षी आहे. लांब, दुंभंगलेली शेपूट हे याचे वैशिष्ट्य. कोतवाल नर-मादी दिसायला सारखेच असतात. हे पक्षी संरक्षणार्थ  कावळे ,  ससाणे  सारख्या मोठ्या, हिंस्र पक्ष्यांच्या मागे लागून त्यांना पळवून लावतात म्हणून यांच्या आश्रयाने इतर लहान-मोठे पक्षी आपले घरटे बांधतात. या कामावरून यांचे नाव कोतवाल पडले असावे. आवाज संपादन करा   कोतवाल (पक्षी) आवाज   ( सहाय्य · माहिती ) वास्तव्य/आढळस्थान  कोतवाल (पक्षी) संपूर्ण  भारतभर  आढळतो तसेच  ईराणसह ,  पाकिस्तान ,  बांगलादेश ,  म्यानमार ,  श्रीलंका ,  चीन ,  इंडोनेशिया या देशांमध्येही याचे वास्तव्य आहे. हे पक्षी एकट्याने किंवा लहान-मोठ्या थव्याने शेतीच्या भागात आणि मोकळ्या मैदानी प्रदेशात राहणे पसंत करतात. हे सहसा विद्युत तारांवर किंवा गुरांच्या कळपात राहून विविध कीट पकडू

वर-वरण (तिलक)

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वर-वरण (तिलक) हिन्दू धर्म में सद्गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है। समाज के सम्भ्रान्त व्यक्तियों की, गुरुजनों की, कुटुम्बी-सम्बन्धियों की, देवताओं की उपस्थिति इसीलिए इस धर्मानुष्ठान के अवसर पर आवश्यक मानी जाती है कि दोनों में से कोई इस कत्तर्व्य-बन्धन की उपेक्षा करे, तो उसे रोकें और प्रताड़ित करें। पति-पत्नी इन सन्भ्रान्त व्यक्तियों के सम्मुख अपने निश्चय की, प्रतिज्ञा-बन्धन की घोषणा करते हैं। यह प्रतिज्ञा समारोह ही विवाह संस्कार है। विवाह संस्कार में देव पूजन, यज्ञ आदि से सम्बन्धित सभी व्यवस्थाएँ पहले से बनाकर रखनी चाहिए। इस संदूक को:  देखें  •  संवाद  •  संपादन हिन्दू धर्म श्रेणी इतिहास  ·  देवता सम्प्रदाय  ·  पूजा  · आस्थादर्शन पुनर्जन्म  ·  मोक्ष कर्म  ·  माया दर्शन  ·  धर्म वेदान्त  · योग शाकाहार   ·  आयुर्वेद युग  ·  संस्कार भक्ति  {{ हिन्दू दर्शन }} ग्रन्थशास्त्र वेदसंहिता  ·  वेदांग ब्राह्मणग्रन्थ  ·  आरण्यक उपनिषद्  ·  श्रीमद्भगवद्गीता रामायण  ·  महाभारत सूत्र  ·  पुराण शिक्षा

तिलक

तिलक तिलक  का अर्थ है भारत में किसी भी शुभ कार्य से पूर्व के माथे पर लगाया जानेवाला चिन्ह। शास्त्रानुसार यदि व्यक्ति तिलक नहीं लगाता हैं तो उसके द्वारा किया गया कोई भी शुभ कार्य पूजा कर्म इत्यादि फलीभूत नहीं होता और तिलक हीन व्यक्ति का दर्शन करना भी निषेध कहां गया है। तिलक हमेंशा दोनों भौहों के बीच "आज्ञाचक्र" पर भ्रुकुटी पर किया जाता है। इसके अलावा शरीर के अन्य स्थानों पर भी तिलक किया जाता है। इसे चेतना केंद्र भी कहते हैं। पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः| सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः|| मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका| द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम्|| तिलक हमेशा पर्वत के नोक का, नदी तट की मिट्टी का, पुण्य तीर्थ का, नदी के तट का, चीटी की बाँबी व तुलसी के मूल की मिट्टी का या गोपी चंदन यही उत्तम तिलक है। तिलक हमेंशा चंदन या कुमकुम का ही करना चाहिए। कुमकुम हल्दी और चूना के पानी से बना होतो उत्तम होता हैं। मूल संपादित करें स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च| तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना|| तिलक के बीना ही यदि तिर्थ स्नान, जप कर्म,

राजा-महाराजा मुकुट क्यों पहनते थे, कोई विज्ञान है या सिर्फ शान के लिए, पढ़िए

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        राजा-महाराजा मुकुट क्यों पहनते थे, कोई विज्ञान है या सिर्फ शान के लिए, पढ़िए /  भारत के इतिहास में कई महान राजाओं की कहानियां लिखी हुई है। कुछ कहानियों में मुकुट के बारे में विशेष वर्णन मिलता है। किसी भी राजा के लिए उसका मुकुट प्राणों से भी प्रिय होता था। सवाल यह है कि राजा महाराजाओं को उनका मुकुट इतना प्रिय क्यों होता था। सार्वजनिक जीवन में वह हमेशा मुकुट क्यों पहने रहते थे। क्या इसके पीछे कोई विज्ञान है या सिर्फ अपनी शान के लिए राजा-महाराजा ऐसा करते थे। आइए मजेदार प्राचीन भारतीय विज्ञान के बारे में जानते हैं:-  राजा-महाराजा के मुकुट के पीछे का विज्ञान क्या है, यहां पढ़िए प्राचीन भारत में राजा का मुकुट विशेष रूप से तैयार किया जाता था। सिर की परिधि के बिंदुओं पर गोलाकार में समानरूप से दबाव उत्पन्न करता था। उसमें समाई रिक्ति द्वारा ब्रह्मांड की शक्तितत्त्वात्मक तरंगों को अपनी ओर आकृष्ट कर देह में तेज का संवर्धन करने हेतु पूरक सिद्ध होता था। अतः उनके लिए तेज के स्तर पर सूर्यनाडी द्वारा निरंतर सजगता एवं कार्यरतता बनाए रखना संभव होता था।’  राजा-महाराजा सोने का मुकुट क्यों पहनते थे,

बुद्धा का मतलब और राशि

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बुद्धा का मतलब और राशि - Buddha meaning aur rashi in hindi माई उपचार     बच्चों के नाम     हिन्दू लड़कों के नाम और अर्थ   Buddha English: Buddha नाम बुद्धा अर्थ जागृत, भगवान बुद्ध, एक प्रबुद्ध, शीर्षक पहले राजकुमार गौतम के लिए इस्तेमाल किया, जो बौद्ध धर्म के संस्थापक थे लिंग लड़का धर्म हिन्दू अंकज्योतिष 22 लंबाई 2.5 राशि वृषभ वृषभ का राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है। इस राशिवालों के लिए शुभ दिन शुक्रवार और बुधवार होते हैं। कुलस्वामिनी को वृषभ राशि का आराध्य माना जाता है। गले, निचले जबड़े और इंसुलिन का उत्पादन वृषभ द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वृषभ की स्थिति मज़बूत होने पर दांतों से जुडी समस्याएं नहीं होती और सुनने की क्षमता बढ़ती है। वृषभ के कमजोर होने के कारण गर्दन में अकड़न, गले के संक्रमण और कान के संक्रमण की सम्भावना बढ़ सकती है। वृष राशि के व्यक्तियों का गला बहुत ही संवेदनशील होता है। इन्हें भोजन-नली, गले की हड्डियों, कान, थायरॉइड ग्लैंड और निचले जबड़े से जुडी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। बुद्धा नाम की राशि - Buddha naam ka rashifal वृषभ राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है। इस राशिवालों