तिलक
तिलक
तिलक का अर्थ है भारत में किसी भी शुभ कार्य से पूर्व के माथे पर लगाया जानेवाला चिन्ह।
शास्त्रानुसार यदि व्यक्ति तिलक नहीं लगाता हैं तो उसके द्वारा किया गया कोई भी शुभ कार्य पूजा कर्म इत्यादि फलीभूत नहीं होता और तिलक हीन व्यक्ति का दर्शन करना भी निषेध कहां गया है। तिलक हमेंशा दोनों भौहों के बीच "आज्ञाचक्र" पर भ्रुकुटी पर किया जाता है। इसके अलावा शरीर के अन्य स्थानों पर भी तिलक किया जाता है। इसे चेतना केंद्र भी कहते हैं।
- पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः| सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः||
मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका| द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम्||
तिलक हमेशा पर्वत के नोक का, नदी तट की मिट्टी का, पुण्य तीर्थ का, नदी के तट का, चीटी की बाँबी व तुलसी के मूल की मिट्टी का या गोपी चंदन यही उत्तम तिलक है। तिलक हमेंशा चंदन या कुमकुम का ही करना चाहिए। कुमकुम हल्दी और चूना के पानी से बना होतो उत्तम होता हैं।
मूलसंपादित करें
- स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च|
तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना|| तिलक के बीना ही यदि तिर्थ स्नान, जप कर्म, दानकर्म, यग्य होमादि, पितर हेतु श्राध्धादि कर्म तथा देवो का पुजनार्चन कर्म ये सभी कर्म तिलक न करने से कर्म निष्फल होता है |
पुरुष को चंदन व स्त्री को कुंकुंम भाल में लगाना मंगल कारक होता है|
तिलक स्थान पर धन्नजय प्राण का रहता है| उसको जागृत करने तिलक लगाना ही चाहीए | जो हमें आध्यात्मिक मार्ग की ओर बढाता है|
नित्य तिलक करने वालो को शिर पीडा नही होती...व ब्राह्मणो में तिलक के विना लिए शुकुन को भी अशुभ मानते हैै..| शिखा, धोती, भस्म, तिलकादि चिजों में भी भारत की गरीमा विद्यमान है…||
~दक्षद्विज....बनारस
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