बौद्ध ग्रंथ तिपितक में श्री राम कहाँ से आये?
बौद्ध ग्रंथ तिपितक में श्री राम कहाँ से आये?
बुद्ध और बौद्ध गर्न्थों का जन्म श्री राम के बाद हुआ है, बुद्धिस्ट और भीम अनुयाई कितना ही श्री राम को गाली दे डालें लेकिन जाने और अनजाने में वह बुद्ध को और उनके वचन और धर्म ग्रंथ तिपिटक में उनकी वाड़ी को ही झुठला रहे है बौद्ध ग्रंथों में श्री राम ,सीता और उनके पिता अथवा चारों भाइयों का जिक्र होने से यह साबित होता है की बौद्ध ग्रंथ तिपिटक और बुद्ध का जन्म श्री राम के बाद हुआ | या दूसरी सदी में सन 76 ई० के आस पास सर्वप्रथम कनिष्क के समय मे त्रिपिटिक को लिपिबद्ध किया गया "कनिष्क के पूर्व बुद्ध या बौधों का कोई लिखित साक्ष्य कही प्राप्त नही होता , यहाँ तक कि न यूनानी दार्शनिक मेगस्थनीज की इंडिका में न ही अशोक के शिलालेख में यहा तक कि चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार मे आया विदेशी राजदूत मेगस्थनीज अपनी पुस्तक इंडिका में कही बुद्ध या बौधों का जिक्र नही करता ,, हां कृष्ण और शिव की उपासना का जिक्र उसने जरूर किया है। ,,, अतः यह कहना कि त्रिपिटिक के रचनाकार बुद्ध के समकालीन उनके शिष्य आन्नद है यह बौधों की कोरी गप्प है ,यदि मान भी लेते है तो श्री राम बौद्धों के दादा हुए और माता सीता बौद्धों की दादी क्यों की बुद्ध खुद कहा रहे है की राम की कथा हमसे पहले की है जैसा की आधुनिक रामायण में श्री राम का गोत्र आदित्य (सूर्यवंशी) वैसा ही बुद्ध का भी गोत्र तिपिटक के सुत्तनिपात में आदित्य(सूर्यवंशी) है|दोनों के पूर्वज इक्ष्वाकु ही है |यहां तक की जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी के पूर्वज भी इक्ष्वाकु है उनका भी गोत्र जैन ग्रंथ में आदित्य (सूर्यवंशी) ही बताया गया है |राम के बारे में बौद्ध ग्रंथ में इसप्रकार वर्णन है.......
‘‘दस वस्ससहस्सानि, सट्ठि वस्ससतानि च।
कम्बुगीवो महाबाहु, रामो रज्जमकारयी’’ति॥
अर्थ –सतरह हजार वर्षों तक महाबाहु राम और उनका राज्य रहा अर्थात उनके वंसजों ने राज्य किया|
राम के बारे में दसरथ जातक में राम के चारों भाइयों समेत सीता जी का भी वर्णन है इस प्रकार .............. संक्षेप में ....
अतीते बाराणसियं समीपे अयोज्ज्या दसरथमहाराजा नाम अगतिगमनं(आकर) पहाय धम्मेन रज्जं कारेसि। तस्स सोळसन्नं इत्थिसहस्सानं जेट्ठिका अग्गमहेसी द्वे पुत्ते एकञ्च धीतरं विजायि। जेट्ठपुत्तो रामपण्डितो नाम अहोसि, दुतियो लक्खणकुमारो नाम, धीता सीता देवी नाम। अपरभागे महेसी कालमकासि। राजा तस्सा कालकताय चिरतरं सोकवसं गन्त्वा अमच्चेहि सञ्ञापितो तस्सा कत्तब्बपरिहारं कत्वा अञ्ञं अग्गमहेसिट्ठाने ठपेसि। सा रञ्ञो पिया अहोसि मनापा। सापि अपरभागे गब्भं गण्हित्वा लद्धगब्भपरिहारा पुत्तं विजायि, ‘‘भरतकुमारो’’तिस्स नामं अकंसु। राजा पुत्तसिनेहेन ‘‘भद्दे, वरं ते दम्मि, गण्हाही’’ति आह। सा गहितकं कत्वा ठपेत्वा कुमारस्स सत्तट्ठवस्सकाले राजानं उपसङ्कमित्वा ‘‘देव, तुम्हेहि मय्हं पुत्तस्स वरो दिन्नो, इदानिस्स वरं देथा’’ति आह। गण्ह, भद्देति। ‘‘देव, पुत्तस्स मे रज्जं देथा’’ति वुत्ते राजा अच्छरं पहरित्वा ‘‘नस्स, वसलि, मय्हं द्वे पुत्ता अग्गिक्खन्धा विय जलन्ति, ते मारापेत्वा तव पुत्तस्स रज्जं याचसी’’ति तज्जेसि। सा भीता सिरिगब्भं पविसित्वा अञ्ञेसुपि दिवसेसु राजानं पुनप्पुनं रज्जमेव याचि।
अर्थ - एक बार, बनारस के नजदीक अयोज्ज्या से आकर में, दशरथ नाम के एक महान राजा ने बुराई के मार्गों को त्याग दिया, और राज धर्म में शासन किया। अपनी सोलह हजार पत्नियों में से, सबसे बड़ी और रानी पत्नी के दो बेटे थे, बड़े पुत्र का नाम राम-पंडिता या राम रखा गया था, दूसरे को पराजकुमार लक्षाना नाम दिया गया था। उनके पास सीता भी थी जो धिता पुत्रबधु थीं। समय के साथ, एक रानी पत्नी की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु पर राजा लंबे समय से दुःख से कुचल गया था, लेकिन अपने दरबारियों से आग्रह किया कि उसने उसका अंतिम संस्कार किया, और रानी पत्नी के रूप में अपनी जगह पर एक और को महत्व दिया । वह राजा और प्रिय से प्रिय थी। समय पर वह भी गर्भवती हुई, और उसे ध्यान देने के लिए सभी ध्यान दिया गया, उसने एक बेटा लाया, और उन्होंने उसे राजकुमार भारत नाम दिया।राजा को अपने बेटे से बहुत प्यार था , और रानी से कहा, "देवी , मैं आपको वरदान देता हूं: चुनें।" उसने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन उस समय के लिए इसे टाल दिया। जब लड़का सात वर्ष का था, तो वह राजा के पास गई, और उससे कहा, "हे मेरे प्रभु, आपने मेरे बेटे के लिए वरदान का वादा किया था। क्या तुम मुझे अब देोगे?" "चुनें, महिला," उसने कहा। "मेरे भगवान," उसने कहा, "मेरे बेटे को राज्य दें।" राजा ने अपनी उंगलियों को उसकी ओर इशारा किया; "बाहर,बुरा दुष्परिणाम!" उसने गुस्से में कहा, "मेरे दो अन्य बेटे आग लगने की तरह चमकते हैं, क्या आप उन्हें मार देंगे, और अपने बेटे के लिए राज्य से पूछेंगे?
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