मुर्खों के मनुवादी बुध्द(बाल्मिकी रामायण)
मुर्खों के मनुवादी बुध्द(बाल्मिकी रामायण)
आरोप क्या है?
रामायण तथागत बुद्ध के बाद लिखी हुई एक कहानी है!....
कैसे आरोप ?? ....
यथा हि चोरः स तथा ही बुद्ध स्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम् -अयोध्याकांड सर्ग 110 श्लोक 34
“जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है तथागत और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाय. परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिक से ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे! (श्लोक 34, सर्ग 109, वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड.)”
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इस श्लोक में बुद्ध-तथागत का उल्लेख होना हैरान करता है और इसके आधार पर मैं इस तर्क को अकाट्य मानता हूँ कि बुद्ध पहले हुए और रामायण की रचना बाद में की गई.
उत्तर - यह जो प्रसंग चल रहा है इसमें यदि हम इस श्लोक से पहले के श्लोक की ओर देखें तो बुद्ध शब्द का प्रयोग किया गया है जो कि स्पष्ट रूप से गौतम बुद्ध के लिये नही है। इसी श्लोक की कड़ी में 34 नम्बर श्लोक आता है और इसमें बुद्ध शब्द का फिर से उपयोग किया गया है ठीक उसी सन्दर्भ में जिसमें पिछले श्लोक में बुद्ध शब्द का प्रयोग आया है।
जाबालि को भगवान् श्रीराम श्लोक 33 में उसके नास्तिक विचारों के कारण विषमस्थबुद्धिम् एवं अनय बुद्धया शब्दों से वाचित किया है। विषमस्थबुद्धिम् माने वेद मार्ग से भ्रष्ट नास्तिक बुद्धि एवं अनय बुद्धया (अ-नय) माने कुत्सित बुद्धि। श्लोक 33 का अन्वय इस प्रकार होगा –
अहं निन्दामि तत् कर्म कृतम् पितुः त्वाम् आगृह्णात् यः विषमस्थ बुद्धिम् चरन्तं अनय एवं विधया बुद्धया सुनास्तिकम् अपेतं धर्म पथात्
हे जबालि! मै अपने पिता के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होंने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा।
ठीक इसी प्रसंग को आगे बढाते हुए भगवान् श्रीराम कहते हैं कि जाबालि के समान वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को सभा में रखना तो दूर की बात राजा को ऐसे व्यक्ति को एक चोर के समान दण्ड देना चाहिये।
अब गौतम बुद्ध यहाँ कहाँ से आ गए
श्लोक 34 में बुद्धस्तथागतं में विसर्ग सन्धि है जिसका विच्छेद करने पर बुद्धः + तथागतः एवं इसके बाद शब्द आया है नास्तिकमत्र जिसमें दो शब्द हैं नास्तिकम् + अत्र, इसके बाद आया है विद्धि। इसका अन्वय हुआ – विद्धि नास्तिकम अत्र तथागतम्। अर्थात् नास्तिक (atheist) को केवलमात्र जो बुद्धिजीवी (mere intellectual) है उसके समान (equal) मानना चाहिए। इसके पहले की पंक्ति का अन्वय हुआ – यथा हि तथा हि सः बुद्धाः चोरः – अर्थात् केवलमात्र जो बुद्धिजीवी है उसको चोर के समान मानना चाहिए और दण्डित करना चहिए।
अन्त में गौतम बुद्ध की चोर के साथ उपमा देना यह अनुवाद केवल गलत है।
यहा ये कहा जाए कि बुद्ध का अर्थ तो बुद्धिजीवी है तो फिर बुद्धिजीवी को चोर समान क्यों बताया है ? तो इसका उत्तर है कि अर्थ यथा प्रकरण अनुसार विचार करना चाहिए | यहा नास्तिक बुद्धिजीवी के लिए है न कि सभी बुद्धिजीवो के लिए इसका निर्देश पूर्व श्लोक ३३ में बताया है जहा जाबालि के लिए - " विषमस्थबुद्धिम् बुद्ध्यानयेवंविधया " शब्द से वेद मार्ग भ्रष्ट ,विषम बुद्धि वाला कहा गया है अत: ३४ वे श्लोक में आया बुद्ध शब्द का सम्पूर्ण तात्पर्य होगा - विषम बुद्धि वाला ,वेद विरोधी ,कुत्सित बुद्धि वाला बुद्धिजीवी अर्थात ऐसा व्यक्ति जो अपनी तर्क शक्ति का प्रयोग कुत्सित कार्यो में करता है |
श्लोक कर्ता ने पूर्व में जिस बुद्ध अर्थात बुद्धिजीवी को सम्बोधित किया है उसके ;लक्षण बता दिए है फिर अगले श्लोक में छंद और पुनरुक्ति आदि कारण विचार कर यही लक्षणों का उल्लेख नही किया इसलिए पूर्व श्लोकानुसार यहा बुद्ध का तात्पर्य लेना चाहिए जो कि गौतम बुद्ध में घटित नही होता है | यहा बुद्ध शब्द देख गौतम बुद्ध अर्थ लेना मुर्खता ही है ।
मित्रों ऐसे आरोप लगाने वाले अल्पज्ञानियो की बातों में ना आये ये बुद्धिहीन है।
और आपको भी बुद्धिहीन बनाना चाहते है।
कल को ये लोग यह भी कहेंगे की हनुमान चालीसा में भी रावण अजान करता था,
"रावण जुद्ध अजान कियो तब" ऐसे लोगो की मती सच में मारी गयी है,
बहुत सुंदर व्याख्या की आपने...
REPLYकुछ लोगों का कहना है कि मैं ने अपने लेख में अयोध्या कांड (109/34) का जो श्लोक उद्धृत किया है उस का अर्थ सही नहीं किया है. उस में 'बुद्धः' शब्द का अर्थ 'बुद्धि' है, 'महात्मा बुद्ध' नहीं, क्योंकि राम महात्मा बुद्ध से पहले हो चुके थे.
REPLYविवादास्पद श्लोक इस प्रकार है:
'यथा हि चोरः स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि'
इस का अर्थ मैं ने किया था-'जैसे चोर है वैसे ही बुद्ध है. तथागत (बुद्ध) नास्तिक है.' अपने इस अर्थ को सही सिद्ध करने के लिए मैं पुराने और नए टीकाकारों के अर्थ यहां प्रस्तुत करने चाहूंगा:
(1) 15वीं सदी की गोविंदराज कृत 'रामायणभूषण' नामक संस्कृत टीका में
उक्त स्थल की व्याख्या करते हुए लिखा है:
तथागतम् बुद्धतुल्यम्
अर्थात तथागत का अर्थ है-बुद्ध जैसे.
(2) 18वीं सदी के प्रथम चरण में हुए व्याकरण के महापंडित नागेश भट्ट ने
'रामायण तिलक' नामक संस्कृत टीका में लिखा है।
बौद्धादयो राज्ञश्चोरवद् दंड्याः इत्याह यथा हीति बुद्धो बुद्धमतानुसारी यथा चोरवद् दंड्यः इति हि प्रसिद्धम्'.
अर्थात बौद्धमत को मानने वालों को राजा यह चोर की तरह दंड दे. बुद्ध का अर्थ है-बौद्ध को मानने वाला.
(3) गीता प्रेस, गोरखपुर से हिंदी टीका सहित छपी वाल्मीकिरामायण' में उक्त
श्लोक की टीका में लिखा है: 'जैसे चोर दंडनीय होता है, उसी प्रकार (वेदविरोधी)
बुद्ध (बौद्ध मत का अनुयायी) भी दंडनीय है. तथागत (नास्तिक विशेष) और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहां इसी कोटि में समझो.' (श्री मद्वाल्मीकिरामायण, संवत 2017, पृष्ठ 468-69).
इन प्राचीन और अर्वाचीन टीकाकारों के अतिरिक्त डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी,
चंद्रशेखर पांडेय आदि विद्वानों ने अपनी कृतियों क्रमशः, हिंदी साहित्य की भूमिका' और संस्कृत साहित्य का इतिहास' में यही अर्थ लिखा है. ऐसे में यह कहना सरासर गलत है कि मैं ने श्लोकार्थ बदला है. जहां तक मैं जानता हूं इस श्लोक में प्रयुक्त 'बुद्ध' शब्द का अर्थ 'बुद्धि' किसी भी टीका में उपलब्ध नहीं है और न ही 'बुद्धि' अर्थ करने से श्लोक के अर्थ का कोई सिरपैर बनता
है. आलोच्य श्लोक निःसंदेह महात्मा बुद्ध की ओर संकेत करता है.
डॉ. सुरेंद्र कुमार शर्मा
ye fake hai agar sahi hai to granth ki photo photo post kro
मित्रो थोड़ा दिमाग इतिहास की और भी लगाइए फिर तर्क कीजिए। सब से पहले राजा बिंबिसार ने भगवान महावीर से सवाल किया के रामायण के इतने सारे संस्करण(versions) है तो कौन सा सही है? तब जैन तीर्थंकर महावीर रामायण सुनाते है। अब महावीर उम्र मे बुद्ध से बड़े थे। जब महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ तब बुद्ध की उम्र 12-18 साल के बीच ही रही होगी ऐसा अलग अलग इतिहासकारो की बुक्स से पता चलता है। मतलब बुद्ध के जन्म से पहले ही रामायण इस धरती पर थी।
दूसरा संदर्भ सिकंदर का राजदूत मेगास्थेंस ने अपनी बुक इंडिका मे भारत मे पूजे जानेवाले देवताओ के बारेमे बताया तब भारत मे शिव और कृष्ण की पुजा होती थी लेकिन बुद्ध का जिक्र तक नहीं किया।
बहोत सारे ऐसे प्रमाण है जिस से साबित होता है की रामायण और महाभारत बुद्ध से पहले ही अस्तित्व मे थी और जैन और बौद्ध धर्म चन्द्र गुप्त और अशोक के बाद धर्म बने।
अशोकवदान नाम की बौद्ध धर्म पुस्तकमे अशोक ने आजीविका संप्रदाय, जैन और बाकी हिन्दुओ पर अत्याचार किया है।
थोड़ा इस पर जान लीजिए फिर कोई तर्क करे।
Pustak ki baat kr rahe ho to upar wala text bhi sahi hi hai raam ke bare me. Bs aap use chupane ke liye apne mtlb se arth nikal rahe ho. Kya fark padta hai ram pahle tha ya baad. Pr ek bhagwan ko aisi baate shobha nhi deti. Aur aisi baate krte hoge to wo god nhi. God wahi hota hai jo sabke liye saman bhaw rakhta ho. Jiske paas bure se bura wyakti bhi jaye to sudhar jaaye. Na ki bhagwan use dur kr de.. Ab aap buddha aur angulimal ko hi dekh lo
TEG bhai aap angulimal aur buddha ke kahaani ki baat karte ho soocho agar angulimal ne buddha ke parivaar ke uper hi hamla kiya hota toh buddha kya unhe boudh bhikku banaate
Aur yaha Shri Ram ne uss jamvaali ko bura bhala kaha hai joh sab satya jaankar bhi apni intelligence ko boora kaam ke liye prayog kare toh isme bura hi kya hai Ravan bhi toh sab satya jaanta tha bilkul jamvaali ki tarah aur buddhijivi bhi tha uske upraant bhi unhone galat raasta apnaaya toh kya uske baad bhi use dand na diya jaaye Netaji Subash chandra bose bhi toh yehi kahate the ki joh insaan sab kuch jaankar bhi anyaae ka saath de use dand dene me ek pal ke liye bhi samay na gavaao
Aur Shri Ram ji koi bhagwan nahi mahapurush the jisko baadme hamaare samaaj ne bhagwan ki upaadhi di joh gautam buddha ko bhi diya gaya
Bhagwan kabhi dusre wyakti ko nastik buddhi ya kutsit buddhi nhi kah sakte.. Agar aisa kahte hai to bhagwaan nhi ho sakte. Kyoki koi bhi wyakti aisa nhi hota jise sudhara na ja sake km se km bhagwan ke liye to ye mushkil nhi
REPLYJoh vyakti sach jaankar bhi anyaae ka saath de uske liye dand se bara aur koi cheez nahi hai sudhaarne ke liye
Aur maine tumhe uper bhi jawaab diya hai uss comment ko bhi padh lena
Boht hi sundar vyaakhya kiya aapne aise hi samaaj ko inn bamcefo ke jaal se nikaalkar samaaj ko jaagruk kariye
REPLYराम के समय में भी नास्तिक थे,, मेरी समझ में आपकी ये गढपंथ कहानी नही आई, माफी चाहता हूँ भाई
REPLYNhi smjh aaye to aap Ayurved, geeta koi bhi book padh le, ya ramayan he hajaro baar buddhihi, buddho ka use kiya gya hai, aur har jagah intellectual , buddhiman k roop me kiya gya hai.
Thanks sir, mujhe