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12 तरह की होती है लॉफिंग बुद्धा की मूर्ति, जानिए कौन-सी घर में और कौन-सी ऑफिस में रखें

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12 तरह की होती है लॉफिंग बुद्धा की मूर्ति, जानिए कौन-सी घर में और कौन-सी ऑफिस में रखें By Asianet News Hindi First Published Feb 10, 2020, 11:15 AM IST HIGHLIGHTS दोनों हाथ ऊपर किए, पीठ पर थैला लटकाए लॉफिंग बुद्धा की मूर्ति कई घरों में देखी जा सकती है। इसको घर में रखने के पीछे जो कारण है वो बहुत ही मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक हैं। Get Notification Alerts Allow लॉफिंग बुद्धा एक नहीं, बल्कि 12 तरह के होते हैं। चीन में मान्यता है कि अलग-अलग जगह और इच्छाओं के हिसाब से इनको रखा जाता है। कौन से लाफिंग बुद्धा सही हैं यानि कौन से लाफिंग बुद्धा किस मनोकामना की पूर्ति करता है, आज हम आपको बता रहे हैं- 1. दोनों हाथ ऊपर किए लॉफिंग बुद्धा अगर बिजनेस ठीक से नहीं चल रहा हो या लगातार नुकसान और पैसों की कमी का सामना करना पड़ रहा हो तो दोनों हाथ ऊपर किए हुए हो लॉफिंग बुद्धा की मूर्ति दुकान या ऑफिस में रखें, इससे बिजनेस बढ़ने लगेगा। 2. धन की पोटली लिए लॉफिंग बुद्धा धन की पोटली अपने कांधे पर टांगे लॉफिंग बुद्धा किसी भी घर या ऑफिस के लिए शुभ माने गए हैं। इन्हें रखने से पैसों से जुड़ी हर परेशानी खत्म होने लगती

Symbolism of Animals in Buddhism

Symbolism of Animals in Buddhism Ven. Jampa Choskyi Buddhist Himalaya,  VOL. I  NO. I  SUMMER 1988 Copyright 1988 by Gakken Co. Ltd. In Asian culture there is aot such a wide gap between spiritual and material things as there seems to exist in the western civilization of today. Therefore religious symbols are a living part of all aspects of Asian culture. We will describe the different symbols both in their outer and inner or esoteric meaning, according to the different teachings of Lord Budddha. However, according to the bnuddhisst teachings the very physical existence of any phenomena is dependent on the inner meaning, which is due to the mental creation or Karmic activity of the sentient beings. That means that the face that the symbols do exist is due to the mental or Karmic creation of those beings and cannot exist without it. Just as a plant needs a seed in order to come into existence, in the same way the plant as a symbol exists only because there is a Karmic seed which causes

बौद्ध ग्रंथ तिपितक में श्री राम कहाँ से आये?

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बौद्ध ग्रंथ तिपितक में श्री राम कहाँ से आये? By  RAKESH MAURYA   -  July 06, 2019 बुद्ध और बौद्ध गर्न्थों का जन्म श्री राम के बाद हुआ है, बुद्धिस्ट और भीम अनुयाई कितना ही श्री राम को गाली दे डालें लेकिन जाने और अनजाने में वह बुद्ध को और उनके वचन और धर्म ग्रंथ तिपिटक में उनकी वाड़ी को ही झुठला रहे है बौद्ध ग्रंथों में श्री राम ,सीता और उनके पिता अथवा चारों भाइयों का जिक्र होने से यह साबित होता है की बौद्ध ग्रंथ तिपिटक और बुद्ध का जन्म श्री राम के बाद हुआ | या दूसरी सदी  में सन  76  ई० के आस पास सर्वप्रथम कनिष्क के समय मे त्रिपिटिक को लिपिबद्ध किया गया  " कनिष्क के पूर्व बुद्ध या बौधों का कोई लिखित साक्ष्य कही प्राप्त नही होता  ,  यहाँ तक कि न यूनानी दार्शनिक मेगस्थनीज की इंडिका में न ही अशोक के शिलालेख में   यहा तक कि चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार मे आया विदेशी राजदूत मेगस्थनीज अपनी पुस्तक इंडिका में कही बुद्ध या बौधों का जिक्र नही करता  ,,  हां कृष्ण और शिव की उपासना का जिक्र उसने जरूर किया है।  ,,,  अतः यह कहना कि त्रिपिटिक के रचनाकार बुद्ध के समकालीन उनके शिष्य आन्नद है यह बौधों की

भारतीय इतिहास के पांच अशोक में असली अशोक कौन था ?

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भारतीय इतिहास के पांच अशोक में असली अशोक कौन था ? By  RAKESH MAURYA   -  July 15, 2019 क्या हम अन्धभक्ति में किसी को भी कुछ मान लें ...................................................जैसे आज हम अशोक नाम पर इतिहास का DNA करेंगे ....आइये सबसे पहले हम 'पहले' अशोक के बारे में बात करते है ..... पहला अशोक :   कल्हण की  ' राजतरंगिणी '  के अनुसार कश्मीर के राजवंशों की लिस्ट में  48 वें राजा का नाम अशोक था ,  जो कि कनिष्क से तीन पीढ़ी पहले था। वह कश्मीर के गोनंद राजवंश का राजा था। इस राजा को धर्माशोक भी कहते थे।इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने पूर्वजों की तरह अशोक भी वैदिक धर्म का अनुयायी था। कल्हण की  ' राजतरंगिणी '  के अनुसार अशोक के इष्टदेव शिव थे ,  लेकिन अशोक युद्ध के बाद अब शांति और मोक्ष चाहते थे और उस काल में बौद्ध मत अपने चरम पर था। सभी बौद्ध ग्रंथ अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी बताते हैं। अशोक के बौद्ध होने के सबल प्रमाण उसके अभिलेख हैं। राज्याभिषेक से संबद्ध लघु शिलालेख में अशोक ने अपने को  ' बुद्धशाक्य '  कहा है। भाब्रु लघु शिलालेख में अशोक त्रिरत्न- बुद्ध

दशरथ-जातक

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दशरथ-जातक [6:31 PM, 8/15/2018]  Maurya The Hindu Translate by Rakesh kumar maurya:  जाटक संख्या 461  BAODH  GARANTH TRIPITAK दशरथ-जातक। (* 1)              "लखखाना चलो," इत्यादि .-- यह कहानी मास्टर ने जेटवाना मठ में एक मकान मालिक के बारे में बताया जिसके पिता मर गए थे। इस आदमी को अपने पिता की मौत पर दु: ख से डर गया था: अपने सभी कर्तव्यों को पूर्ववत कर दिया, उसने खुद को अपने दुःख को पूरी तरह से दे दिया। मानव जाति पर देखे जाने वाले दिन की शुरुआत में मास्टर को लगा कि वह पहले पथ (ट्रान्स) के फल को प्राप्त करने के लिए परिपक्व था। अगले दिन, श्रवस्ती शहर में भक्तों के लिए अपने राउंड जाने के बाद, उनका भोजन किया गया, उन्होंने भाइयों (भिक्षुओं) को खारिज कर दिया, और उनके साथ एक जूनियर भाई (भिक्षु) ले गए, इस आदमी के घर गए, और उन्हें अभिवादन दिया, और उन्हें संबोधित किया क्योंकि वह शहद मिठास के शब्दों में बैठे थे। "आप दुःख में हैं, शिष्य रखना?" उन्होंने कहा। "हाँ, महोदय, मेरे पिता के लिए दुख से पीड़ित।" मास्टर ने कहा, "शिष्य, बुद्धिमान बुद्धिमान पुरुष जो वास्तव में इ

मुर्खों के मनुवादी बुध्द(बाल्मिकी रामायण)

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मुर्खों के मनुवादी बुध्द(बाल्मिकी रामायण) By  RAKESH MAURYA   -  October 13, 2018      आरोप क्या है? रामायण तथागत बुद्ध के बाद लिखी हुई एक कहानी है!....  कैसे आरोप ?? .... यथा हि चोरः स तथा ही बुद्ध स्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम् -अयोध्याकांड सर्ग 110 श्लोक 34 “जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है तथागत और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाय. परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिक से ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे! (श्लोक 34, सर्ग 109, वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड.)” 👆👆👆....... इस श्लोक में बुद्ध-तथागत का उल्लेख होना हैरान करता है और इसके आधार पर मैं इस तर्क को अकाट्य मानता हूँ कि बुद्ध पहले हुए और रामायण की रचना बाद में की गई. उत्तर - यह जो प्रसंग चल रहा है इसमें यदि हम इस श्लोक से पहले के श्लोक की ओर देखें तो बुद्ध शब्द का प्रयोग किया गया है जो कि स्पष्ट रूप से गौतम बुद्ध के लिये नही है। इसी श्लोक की कड़ी में 34 नम

बौध्द धर्म(धम्म) ही ब्राह्मण धर्म है""":"

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बौध्द धर्म(धम्म) ही ब्राह्मण धर्म है""":" By  RAKESH MAURYA   -  October 17, 2018                          ब्राह्मण कृत बौद्ध धर्म ?  बुद्ध ने कोई धर्म नही बनाया  , बौद्ध धर्म उनके अनुवाई ब्राह्मण शिष्यों द्वारा बनाया गया  । आप सब को यह पढ़ कर और सुन कर आश्चर्य हो सकता है  , किन्तु जव बौद्ध दर्शन के विभिन्न आयामो पर अध्ययन करेगे और उसकी उतपत्ति तथा उसके विस्तार का अवलोकन करेगे तो आप भी इस बात से इंकार नही कर पायेंगे की जिस बौद्ध धर्म की बात हम करते है या सुनते है , उसके संस्थापक बुद्ध नही बल्कि उनके ब्राह्मण शिष्य है। भगवान बुद्ध ने कही यह जिक्र नही किया है कि मैं पूर्वर्ती धर्म त्याग रहा हूं और नए धर्म का निर्माण कर रहा हूं , उन्होंने अपना धर्म स्पष्ट करते हुवे कई बार यह दर्शाया है कि मैं सनातन धर्म का हूं या मैं जिस धर्म की बात कर रहा हूं वह सनातन धर्म ही है।                "एसो धम्मो सनातनो" "गौतम बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापक कहना और मानना उनके साथ अन्याय करने जैसा ही है  । भगवान बुद्ध एक सुधारवादी दृष्ष्टिकोण लेकर चले थे  , उनका पूरा जीवन तत्काल