क्या कनिष्क कालीन बुद्ध प्रतिमा पर शून्य का चिह्न है?

क्या कनिष्क कालीन बुद्ध प्रतिमा पर शून्य का चिह्न है?

baba baba August 17, 2020 17 Comments

 एक तथाकथित भाषा वैज्ञानिक और उसके चेले दावा करते हैं कि भारत की सारी विद्या जैसे - गणित, शिल्प, खगोल, आयुर्वेद आदि सब बौद्धों ने ही खोजी थी। क्योंकि नालंदा आदि सभी प्राचीन विश्व विद्यालय बौद्धों के ही थे। इसी प्रकार इनका कहना है कि शून्य का प्रयोग भी बौद्धों ने ही किया था। भाषा वैज्ञानिक का दावा है कि कनिष्क कालीन एक बुद्ध मुर्ति के छत्र पर 0 शून्य का चिह्न है। 

वैसे मैं इस चीज का खंडन नहीं करना चाहता था। क्योंकि चाहे विज्ञान बौद्धों में हो या जैन आदियों में, किंतु वो रहेगा भारतीयों का ही। मैं क्षत्रिय वंश से भी सम्बंधित हूं इसीलिए मेरे पूर्वजों में से भी कई व्यक्ति भी इन मतों जैसे जेन, बौद्ध के अनुयायी रहे होगें। इसलिए उसमें भी कोई वैज्ञानिक बात मिलना हमारे लिए गर्व की ही बात होगी। किंतु इसकी आड में हिंदुओं को नीचा दिखाया जा रहा है। हिंदू विद्वानों जैसे आर्यभट, भास्कर आदियों के योगदान को नकारा जा रहा है इसीलिए तथाकथित नव बौद्धों को जबाब देना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। 

तो अब इस दावें में कितना बडा झूठ है। वो हम आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं। 

इसमें तथाकथित भाषावैज्ञानिक ने श्रीमान गुणाकर मुले जी की पुस्तक भारतीय लिपियों की कहानी का संदर्भ दिया है। 

गुणाकर जी ने बुद्ध मुर्ति लेख का मूल ब्राह्मीपाठ और उसका अनुवाद दिया है। जो निम्न प्रकार है - 

               - भारतीय लिपियों की कहानी, पेज नं. 64, चित्र 11.2 

- भारतीय लिपियों की कहानी, पेज नं. 65, पंक्ति 2 
अब आप पुस्तक के प्रथम चित्र पर लाल रंग किये निशान पर लिखे अंक को ध्यान से देखें। इसके बाद दूसरे चित्र पर रंगीन निशान की हुई पंक्ति को पढिये। 
यहां हम देखते हैं कि यहां 'शून्य' का कोई भी अंकीय संकेत नही है। अपितु यहां सीधे बीस (20) का ही अंकिय संकेत है। उसके बाद दो आडी लकीरों से दो (2) के अंकिय संकेत को दर्शाया है। 
यह पद्धति बिल्कुल ऐसी है जैसी रोमन अंक लिखने में प्रयुक्त होती है। जैसे रोमन पद्धति में जीरो न होने के कारण 10,20 को विशेष अंकीय संकेतों द्वारा दर्शाया जाता है। रोमन में 10 को X से, 20 को XX से दर्शाते हैं। उसी तरह से इस बुद्ध प्रतिमा में 20 को विशेष चिह्न से दर्शाया है। अगले चित्र में आप प्रतिमा पर दर्शाये अंक को देख सकते हैं - 
इससे स्पष्ट है कि मुर्ति पर शून्य तो दूर की बात है अपितु उन लोगों को दशमलव पद्धति का भी ज्ञान नहीं था। इसीलिए 20 लिखने के लिए एक विशेष अंक चिह्न का प्रयोग किया गया है। यदि 0 और दशमलव पद्धति का ज्ञान होता तो बीस लिखने में 0 - 9 तक की संख्याओं या चिह्नों का ही प्रयोग करते। 
श्री गुणाकर मुले जी ने भी दशमलव पद्धति से अनभिज्ञता की बात को स्वीकारा है। जिसका प्रमाण अगले चित्र में पढें -
- भारतीय लिपियों की कहानी, पृष्ठ 61
तो देखा आपने कहां तो जीरो देख रहे थे और दशमलव पद्धति भी न निकली। अत: बुद्ध प्रतिमा पर शून्य मिलने का दावा एक झूठा और मनगढंत किस्सा है। जिसमें तथाकथित भाषावैज्ञानिक ने गुणाकर जी मूले की पुस्तक को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है। 
अब हम हिंदुओं द्वारा शून्य के प्रयोग का अभिलेखीय और पांडुलिपीय प्रमाण प्रस्तुत करते हैं - 
(1) ग्वालियर के चतुर्भुज मंदिर जो कि 8 वीं शताब्दी का है। उसके एक शिलालेख में शून्य का अंकीय संकेत है। उस अभिलेख का चित्र यहां देखें - 
- The concept of zero, neurology india vol. 67
यहां 0 को स्पष्ट देखा जा सकता है और यह चतुर्भुज भगवान विष्णु के मंदिर से है। इससे भी प्राचीन शून्य का प्रमाण बख्शाली नामक स्थान से प्राप्त गणित के किसी ग्रंथ की पांडुलिपियों में है। इस अज्ञात ग्रंथ की विभिन्न पांडुलिपियां 3 शताब्दी, 8 शताब्दी और 10 वीं शताब्दियों की है। एक ही ग्रंथ की विभिन्न कालों की पांडुलिपियों का एक ही स्थान पर प्राप्त होना सिद्ध करता है कि 3 शताब्दी से 10 वीं शताब्दी तक इस ग्रंथ को परम्परागत रुप से ताड पत्रों पर लिखकर सुरक्षित किया जाता रहा है। इस पांडुलिपि के हम कुछ चित्र प्रस्तुत करते हैं जिनमें शून्य का अंकीय संकेत है - 
- The Bakhshali manuscript, Indian Historical researchers vol. 24.2
 - 
- The Bakhshali manuscript vol. 1, plate xxv
यहां आप शून्य का संकेत देख सकते हैं। ये तीसरी शताब्दी में हिंदुओं द्वारा शून्य के प्रयोग को सिद्ध करता है। इस पांडुलिपि में अंकीय संकेतों को निम्न चित्र में देख सकते हैं, जिसमें 0 से 9 तक के अंक है - 
- On the Bakhshali manuscript, page. 9
ये पांडुलिपि संस्कृत भाषा में है और इसके हिंदू ग्रंथ होने में निम्न प्रमाण है। 
- इसके गणितीय उदाहरणों में महाभारत के पात्रों का उल्लेख है, जैसे कि इसी ग्रंथ के देव नगरिक रुपांतरण में आप युधिष्ठिर का उल्लेख देख सकते हैं - 
- The Bakhshali manuscript an ancient treatise of indian arithme ,  page 62
इस ग्रंथ के रचनाकार का नाम, इसी पांडुलिपि में मिलता है। जो कि एक ब्राह्मण और शिव भक्त है। 
यहां ग्रंथ के देवनागरी और रोमन लिप्यन्तरण प्रस्तुत करते हैं - 
- The Bakhshali manuscript vol. 2, page 237
- The Bakhshali manuscript an ancient treaties of indian arithme, page. 71 
ये हो गया हिंदुओं द्वारा शून्य प्रयोग के प्राचीन अभिलेखीय और पांडुलिपिय साक्ष्य। जब इस ग्रंथ की पांडुलिपि ही 3 शताब्दी ईस्वी की है तो ये ग्रंथ तो मूल रुप से और भी प्राचीन ही होगा। अत: हिंदू प्राचीन काल से ही शून्य का प्रयोग करते थे। 
अब बात करते हैं कि बौद्ध विश्व विद्यालय थे तो हिंदू ब्राह्मण कहां पढाते थे? सबसे पहली बात यह प्रश्न ही मूर्खतापूर्ण है। क्योंकि आज हम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय देखते हैं तो उसमें पढने और पढाने वाले दोनों ही हिंदू हों? यह आवश्यक नहीं है अर्थात् उसमें हिंदुओं के अलावा भी अन्य मत वाले शिक्षक और विद्यार्थी हैं। इसी प्रकार वामपंथियों के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी दक्षिणपंथी शिक्षक और विद्यार्थी हैं। अतः उसी तरह नालंदा में भी ब्राह्मण शिक्षक होगें। इत्सिंग के यात्रा विवरण से भी स्पष्ट है कि बौद्ध भी पाणिनि व्याकरण और महाभाष्य पढते थे। साथ में ऐसा आवश्यक नहीं है कि केवल यही विद्यालय थे? जहां बौद्ध लोग बडे बडे विहार, ऊंचे भवन रचवाकर आडम्बर करते थे। वहीं ब्राह्मण लोग अपनी पर्णकुटिया, वृक्ष के नीचे, वन में तथा छोटे से कच्चे गुरुकुल में ही शिक्षा देते थे। अधिकतर गणितज्ञ, व्याकरण आदि के ब्राह्मण विद्वानों के स्वगृह कच्चे ही थे क्योंकि वे आडम्बर नहीं करते थे और सादा मित्तव्यी जीवन शैली अपनाते थे। 
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -                       
1) भारतीय लिपियों की कहानी - गुणाकर मुले
2) Neurology India vol. 67, supplement 2 , 2019 
3) The Bakhshali Manuscript vol. 2 - Kay G. R. 
4) The Bakhshali Manuscript Vol 1 - Kay G. R. 
5) On the Bakhshali manuscript - Dr. R. Hoernle
6) The Bakhshali manuscript an ancient treatise of the indian arithme - Satya prakash saraswati and Dr. Usha Jyotishmati 

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