शूद्रों को भी उपनयन का अधिकार था - डॉ. भीमराव अम्बेडकर!!!
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शूद्रों को भी उपनयन का अधिकार था - डॉ. भीमराव अम्बेडकर!!!
अनेकों अम्बेडकरवादी प्राचीन वैदिक काल को बुरा बतलाते हैं। वे लोग प्राचीन हिंदू धर्म में छुआछूत और शूद्रों के उपनयन का अनाधिकार भी दर्शाते हैं। लेकिन जब हम डॉ. अम्बेडकर को पढते हैं तो स्थिति बिल्कुल उलट नजर आती है। डॉ. अम्बेडकर प्राचीन काल में हिंदू धर्म को शूद्र और स्त्रियों के लिए अच्छा मानते थे। वे ये भी मानते थे कि हिंदूओं में धीरे - धीरे भेदभाव आदि कुरुतियां आयी थी।
प्राचीन वैदिक काल में स्त्री शिक्षा से सम्बंधित उनका मत, हम पिछली पोस्ट में दर्शा चुके हैं। यहां शूद्रों के उपनयन संस्कार पर बाबा साहेब क्या बोलते हैं, वो दिखाते हैं -
- अध्याय - 12, सिद्धांत की आलोचना, शूद्रों की खोज
उपरोक्त पृष्ठ के अनुसार डॉ. अम्बेडकर यह सिद्ध कर रहे हैं कि शूद्रों को भी उपनयन धारण करने, यज्ञ करने, वेद पढने का अधिकार था।
इसके लिए वे निम्न तर्क और तथ्य प्रस्तुत करते हैं -
1) यजुर्वेद और अथर्ववेद में शूद्रों का गुणगान हैं तथा ऋषि लोग उनकी कृपा का पात्र भी बनना चाहते हैं।
2) सुदास एक शूद्र था। उसने वेदमंत्रों की रचना की थी।
3) सुदास ने यज्ञ किया और शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ करने वाले शुद्र का भी सम्बोधन है।
इस तरह डॉ. अम्बेडकर सनातन धर्म में शूद्रों का यज्ञोपवीत, वेदाध्ययन अधिकार मानते थे।
आगे उन्होनें संस्कार गणपति का प्रमाण देकर शूद्रों के उपनयन संस्कार को पुष्ट किया है।
- शूद्रों की खोज, अध्याय 12 सिद्धांत की आलोचना
मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक A history of ancient sanskrit literature (1859), pp. 207 पर संस्कार गणपति का कथन प्रस्तुत किया है -
- A history of ancient sanskrit literature (1859), pp. 207
संस्कार गणपति में भी शूद्रों का उपनयन संस्कार 'आपस्तम्ब सूत्र' के प्रमाण से लिखा है -
- संस्कारगणपति: (1937), पृष्ठ 642- Get link
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